माजरा वतन का है पर गद्दारों का ठिकाना है
देश तोड़ने का उसने जो ख्वाब दिल में पाला है
ख्वाब को जलाने का काम, सर हमारे आया है
जाति धर्म मजहब का तो बस एक बहाना है
बर्बाद देश करने का हां, ख्वाब उसने पाला है
छंद छंद बातों का जैसे छंद छंद आधार हुआ
कुछ करने को ना हो तो कुछ करने को लाचार हुआ..
देशद्रोह के नारा को जब अभिव्यक्ति आधार हुआ
देश तोड़ने वालों का तब जाति धर्म हथियार हुआ
मजहब याद रहे हमको क्योंकि आरक्षण आधार हुआ
जैसे बड़े बड़े युद्ध का भी इतिहास पुराना आधार हुआ
दुश्मन बनाने के मत पर जैसे बूढा इतिहास जवान हुआ
पर कुछ नया इतिहास पनप रहा भारत के भी सीनों पर
पन्नों पर जो लिखा है जात, फिर से अगर पढ़ा भी जाता,
पल में ही परखा व जाता, फीर से कहीं लिखा नहीं जाता ,
नई-नई इतिहास को, नई-नई इतिहास को,
एक छोटा सा संवेदन है
करुणा है और बस रुदन है
हाथों में प्याला भावों का
होठों पर आत्म निरीक्षण है
यह समय बड़ा ही विलक्षण है
चिड़िया आती है गाती है
सब अपने घर को जाती है
हम खड़ा यहां यू बाट जोहते
क्या मान लूं मैं मधुशाला को
अपने कवि की उस रचना को
पथिक बनू और चल दूं राह को
एक पकड़ के सीधा
शर्त मगर मेरी इतनी है
साथ रहे मेरी पीरा
और गीत बने मेरी हाला
शर्त मगर मेरी इतनी है याद रहूं मैं तुझको
भूलना चाहो फिर भी तुम भूल न पाओ मुझको
शर्त मगर मेरी इतनी है साथ रहे मेरी पीड़ा
और गीत बने मेरी हाला
उसको भी हैं हक हम पर वह भी तो जान लूटाती है
बिना बुलाए ही मेरे पास हमेशा आती है
मदीरा का है शौक मगर मधुशाला को नहीं जाना
संभव हो तो घर भिजवादो व पुरानी प्याला
वापस कर दो मेरी बिखरी व प्यारी सी हाला
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